अहमदाबाद, अंकुर तिवारी
सात साल की प्रिया शाह थैलेसीमिया से जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही थीं। प्रिया एक अच्छी स्टूडेंट हैं लेकिन उन्हें स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। डॉक्टरों ने उन्हें स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की सलाह दी लेकिन उनके परिवार के किसी सदस्य से स्टेम सेल मैच नहीं हुई।
आखिरकार, एक अजनबी उनके लिए किसी योद्धा की तरह दुबई से आया। गोपाल वछानी (44 साल) ने पयह फैसला लेने से पहले पलक तक नहीं झपकाई। गोपाल की स्टेम सेल्स प्रिया से पूरी तरह मैच हो रही थीं।
प्रिया का ऑपरेशन करने वाले सर्जन का कहना है कि उन्हें ऐसे डोनर बड़ी मुश्किल से देखने को मिलते हैं जो इतनी शिद्दत से अपना वादा निभाते हैं। डॉ. चिराग शाह ने बताया,'ज्यादातर डोनर्स जिनके स्टेम सेल्स प्रिया से मैच कर रहे थे और जिन्होंने रजिस्टर कराया था, वे वादे से मुकर गए। डोनर्स का अपने वादे से मुकरना बीमार बच्ची के लिए झटके जैसा होता था। गोपाल जैसे शख्स को देखकर हमारा दिल खुश हो गया।'
गोपाल ने 2013 में खुद को रजिस्टर कराया था। जब उन्हें प्रिया के लिए कॉल आई तो उनके परिवार ने उनसे पूछा कि क्या वह सचमुच यह फैसला लेना चाहते हैं। जवाब में गोपाल ने कहा,'हां, मैं एक जिंदगी बचाना चाहता हूं।' प्रिया के परिवार का कहना है कि गोपाल उनके लिए भगवान की तरह हैं। प्रिया और गोपाल अभी मिले नहीं क्योंकि नियमों के मुताबिक मरीज अपने डोनर से एक साल के बाद ही मिल सकता है। हालांकि गोपाल की इस दरियादिली ने कई दिलों को सुकून दिया है।
सात साल की प्रिया शाह थैलेसीमिया से जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही थीं। प्रिया एक अच्छी स्टूडेंट हैं लेकिन उन्हें स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। डॉक्टरों ने उन्हें स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की सलाह दी लेकिन उनके परिवार के किसी सदस्य से स्टेम सेल मैच नहीं हुई।
आखिरकार, एक अजनबी उनके लिए किसी योद्धा की तरह दुबई से आया। गोपाल वछानी (44 साल) ने पयह फैसला लेने से पहले पलक तक नहीं झपकाई। गोपाल की स्टेम सेल्स प्रिया से पूरी तरह मैच हो रही थीं।
प्रिया का ऑपरेशन करने वाले सर्जन का कहना है कि उन्हें ऐसे डोनर बड़ी मुश्किल से देखने को मिलते हैं जो इतनी शिद्दत से अपना वादा निभाते हैं। डॉ. चिराग शाह ने बताया,'ज्यादातर डोनर्स जिनके स्टेम सेल्स प्रिया से मैच कर रहे थे और जिन्होंने रजिस्टर कराया था, वे वादे से मुकर गए। डोनर्स का अपने वादे से मुकरना बीमार बच्ची के लिए झटके जैसा होता था। गोपाल जैसे शख्स को देखकर हमारा दिल खुश हो गया।'
गोपाल ने 2013 में खुद को रजिस्टर कराया था। जब उन्हें प्रिया के लिए कॉल आई तो उनके परिवार ने उनसे पूछा कि क्या वह सचमुच यह फैसला लेना चाहते हैं। जवाब में गोपाल ने कहा,'हां, मैं एक जिंदगी बचाना चाहता हूं।' प्रिया के परिवार का कहना है कि गोपाल उनके लिए भगवान की तरह हैं। प्रिया और गोपाल अभी मिले नहीं क्योंकि नियमों के मुताबिक मरीज अपने डोनर से एक साल के बाद ही मिल सकता है। हालांकि गोपाल की इस दरियादिली ने कई दिलों को सुकून दिया है।